सुबह सुबह जब मैंने आँख खोली तो
एक अजीब सा मंजर सामने था
जिसे मैंने अभी-अभी ,
स्वपन में कुछ देर पहले महसूस किया
वही हाथ में लिए खंजर सामने था
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Tuesday, July 27, 2010
Tuesday, July 13, 2010
जीवन मेरी एक कविता हैं ...!
अभिलाषा हैं , तो पढ़ लेना
नीरसता का सागर हे , ये
हो सके तो प्रतिमा गढ़ लेना ....!
हैं किसके पास वक़्त यहाँ,
कवि की बातो को समझ सके..!
हैं किसकी अभिलाषा ऐसी ,
नीरसता में गोते लगा सके...!
मैं सत्य हमेशा दिखलाता ...!
हो सके तो सत्य समझ लेना,
जीवन मेरी एक कविता हैं ...!
अभिलाषा हैं , तो पढ़ लेना.......!
अभिलाषा हैं , तो पढ़ लेना
नीरसता का सागर हे , ये
हो सके तो प्रतिमा गढ़ लेना ....!
हैं किसके पास वक़्त यहाँ,
कवि की बातो को समझ सके..!
हैं किसकी अभिलाषा ऐसी ,
नीरसता में गोते लगा सके...!
मैं सत्य हमेशा दिखलाता ...!
हो सके तो सत्य समझ लेना,
जीवन मेरी एक कविता हैं ...!
अभिलाषा हैं , तो पढ़ लेना.......!
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