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Tuesday, November 23, 2010

ललकार .....!




मत सोच तुझे हे क्या करना...?
मत सोच तुझे हे क्या बनना ....?
जो होता हे हो जाने दे,
अपना सबकुछ खो जाने दे ,
चलने दे जीवन की घड़िया,
उसमे कभी बाधा तू बन ,
पर लगे रहो ले कर तन मन |
देख कभी पीछे मुड़कर,
खोने में ही तेरा सुख हे,
पा जायेगा रुक जायेगा
रुकना तो तेरी मौत ही हे ,
जीवन की तेरी सौत ही हे,
चलने दे जैसा चलता हे ,
संकट के भय से क्या डरना ... ?
मत सोच तुझे हे क्या करना...?
मत सोच तुझे हे क्या बनना ....?

डरने की कोई बात नहीं ,
डर कर कब तक जी पाओगे ,
क्या ....? संग्राम नहीं देखा तुमने,
वीरो की हे ये बसुन्धरा ,
डरने बाले मर जाते हैं ,
जीना है , तो खुल कर जी ले ,
बसुधा के अमृत को पी ले,
कायर की भांति जीना क्या ...?
उससे अच्छा तो मौत भला ...!!
साहस कर के देख जरा,
सब कुछ तेरा अपना होगा,
जिसको तू स्वप्नों सा जाना ,
साकार तेरा सपना होगा.....|
साहसी ! ध्वज लहराते हैं,
कायर सोते रह जाते है|
एक दिन सफलता आयेगी ,
तेरे आगे झुक जाएगी ,
उस दिन तू समझ पायेगा,
संसार देखता रह जायेगा |
लोग बाँहे फैलायेगे फिर तुझको गले लगायेगे |
फिर तू धन्य हो जायेगा ,
तेरा जन्म सफल हो जायेगा ,

अब सोच तुझे हे क्या करना ?
कायर बनकर जीवन जीना या ,
साहसी होकर मर जाना ..........?
यह प्रशन छोड़कर जाता हूँ !
अंतिम संकल्प सुनाता हूँ !
तेरा जीवन, तू जैसा जी........!
कोई पूछने नहीं आयेगा .....!
पेश करेगा ,साहसिक नैतिकता ,
संसार नतमस्तक हो जायेगा........!