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Tuesday, September 20, 2011

जनता जाग उठी है ...


माफ़ कीजियेगा...
बहुत दिनों बात फिर हाज़िर हु ,
आपका प्यारा दुलारा दोस्त......

फिर आपके लिए कुछ नए कविताओ के साथ.....

जनता जाग उठी हैं अब !

जनमानस करती पुकार, की हम आजाद नहीं है।
आज भी हम लूटे जाते हैं ,हम आबाद नहीं हैं।

पहले तो गोरो ने लुटा ,
उससे मिली आज़ादी ,
आज लुटते है सब अपने ,
करते है बर्बादी॥

लोकतंत्र का पतन हो रहा ,
भर्ष्टाचार के आगे,
जनता तो लाचार हो गयी ,
कैसे किस्मत जागे ।

जनता जब आवाज़ उठती ,
उसे कुचल देते हो,
आज़ादी की परिभासा क्या ?
ऐसे समझाते हो।

पहले जो संघर्ष हुआ था ,
गोरो को दूर भागने ,
अब संघर्ष शुरू हो गया ,
सोई जनता को जगाने।

जनता तो जागेगी ही ,
उससे पहले तुम जागो,
अपने कर्तव्यो को याद करो ,
वरना गद्दी से भागो ।

घोटाले पर घोटाले कर ,
माँ के आचल में दाग लगाते हो,
अपनी इज्ज़त को खोकर भी ,
तनिक नहीं शरमाते हो।

बहुत हो चूका लुट-पाट
अब कुछ तो शर्म करो,
अपनी माता हो मत लूटो ,
कुछ अच्छे कर्म करो।

जय हिंद ॥