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Sunday, March 28, 2010

अनुकरण बुरा है !

मेरे मित्रो ! एक बात तुमको और समझ लेनी चाहिए और वह यह है की हमें अन्य रास्त्रो से अबस्य ही बहुत कुछ सीखना है | जो व्यक्ति कहता है की मुझे कुछ नहीं सीखना है, समझ लो की वह मृत्यु की राह पर है |जो रास्ट्र कहता है की हम सर्बग्य है, उसका पतन आसन्न है ! जब तक जीना है, तब तक सिखाना है, उसे अपने सांचे में ढाल लेना है |

कोई दुसरो को सिखा नहीं सकता | तुम्हे स्वयं ही सत्य का अनुभव करना है उसे अपने परकृति किए

Thursday, March 4, 2010

तलाश आईने की ! ?????

मुझे तलाश है ,
एक आईने की ,
जिसमे मेरा वो रूप दिखे,
जिसे केवल मैं जानता हूँ ,
वह पारदर्शिता झलके
जिसे मैं मानता हूँ
मुझे तलाश है
एक आईने की
जो मेरी कुरूपता को दिखाए,
ताकि सुन्दरता मुझे खिंच न ले अपने
अंहकार के साये में
मुझे तलाश है
एक आईने की
जिसमे मैं अपना वासतविक रूप देख सकूँ
समझ सकू संसार में मेरा,
अस्तित्व क्या है ?

मुझे तलाश है
एक आईने की जो मुझे बताये
प्यार की परिभासा
क्योंकि मैं आकर्षण में जी रहा हूँ
मुझे तलाश है
एक आईने की जिसमे सभ्यता , संस्कृति ,
भारतीयता की एक सुंदरतम छवी हो
क्योंकि मैं इसे
खो चूका हूँ

मुझे तलाश है
एक आईने की
जो मुझे आजादी
का मतलब बताये
क्योंकिं हम गुलाम है ,
अपनी आदतों के



Wednesday, March 3, 2010

हिन्दू धर्मं


हिन्दू धर्मं एक व्यवाहरिक धर्मं हैं इसमें नैतिकता के पालन को अनिवार्य माना गया हैं यदि व्यक्ति में नैतिक गुण नहीं हैं ; तो वह चाहे जितना भी इस्वर -भक्ति का स्वांग करे, उसे धार्मिक नहीं कहा जाता


मनुष्य के मन में धर्मं के प्रति चाहे कितना आदर क्यों न हो , परन्तु जबतक वह आचरण के माध्यम से व्यक्त नही किया जाता , तबतक उस आदर का कोई मूल्य नहीं होता इसी कारन , हिन्दू धर्मं को जगत का पिता तथा नीति को janani mana जाता हैं धर्म से पृथक रहने वाली नीति विधवा है और नीति के बिना धर्मं एकांगी, आंशिक रह जाता हैं
हिन्दू धर्म का विकास कर्म
१.वैदिक युग
२.आचार्य युग
३.भक्ति युग
४.आधुनिक पुन्रजागरण
धर्मं क्या है ?
धर्मं का मतलब होता है जो धारण किया जा सके ,जिसे दिल से अपनाया जा सके जिसमे किसी का हस्तक्षेप नहीं हो