हिन्दू धर्मं एक व्यवाहरिक धर्मं हैं इसमें नैतिकता के पालन को अनिवार्य माना गया हैं यदि व्यक्ति में नैतिक गुण नहीं हैं ; तो वह चाहे जितना भी इस्वर -भक्ति का स्वांग करे, उसे धार्मिक नहीं कहा जाता
मनुष्य के मन में धर्मं के प्रति चाहे कितना आदर क्यों न हो , परन्तु जबतक वह आचरण के माध्यम से व्यक्त नही किया जाता , तबतक उस आदर का कोई मूल्य नहीं होता इसी कारन , हिन्दू धर्मं को जगत का पिता तथा नीति को janani mana जाता हैं धर्म से पृथक रहने वाली नीति विधवा है और नीति के बिना धर्मं एकांगी, आंशिक रह जाता हैं
हिन्दू धर्म का विकास कर्म
१.वैदिक युग
२.आचार्य युग
३.भक्ति युग
४.आधुनिक पुन्रजागरण
धर्मं क्या है ?
धर्मं का मतलब होता है जो धारण किया जा सके ,जिसे दिल से अपनाया जा सके जिसमे किसी का हस्तक्षेप नहीं हो
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