कौन समझेगा मुझे इस वीरान महफ़िल में ,
जहा दर्द हवा बनकर बिखर जाती है ,
सोचता हूँ अपना दर्द कही और सुनाऊं,
पर कम्बखत दिल को महफ़िल ही भाती हैं
महफ़िलो मैं उठते कहकहे और
चंद अल्फाजो के बीच मेरा गम ,
एक मझधार में गोते लगा रहा उस नाव की तरह होता हे
जो न जाने कब डूब जायेगा ।
फिर भी में झुकूँगा नहीं सुनाऊंगा वो दर्द ,
जिससे कहकहो की जगह आसूंवो का शैलाव
फूटेगा लोग मेरे दर्द में शरीक होगे जरुर
जरुर और समझेंगे की मैं कितना
मार्मिक हूँ..........शायद यही मेरी पहचान बन जाये.......
की आखिर मैं भी उनकी तरह इन्सान हु जो जिन्दगी में मजे के साथ गम भी उठाना जानता हु
पर मैं कभी हारा नहीं ,हरदम जीतता गया....
ओर
और आज भी जीतूँगा.....
उस जंग को जिसे लोग लाइलाज समझते है,
मुझे कोई नहीं हरा सकता मौत भी नहीं......
बस खुश हु....और लोगो को हमेशा खुश रहने की प्रेणना दूंगा ...
जब तक बचूंगा....यही मेरी महफ़िल है,
यही मेरी पहचान हैं जीने का और जीने देने का......
बस आखिर में चंद अल्फाज ....
उनके लिए जो हार चुके हे जितना जिन्दगी के जंग से ।
उन्हें उठाना होगा ...मेरे साथ अनुभव बटाना होगा ताकि उनकी जिन्दगी भी खुशहाल बने...
बाकि किसी को यहाँ अनन्तकाल तक नहीं रहना है,
मृतु निश्चित
पहले या बाद मैं फिर घबराना कैसा ॥
लगा लेंगे गले जब आएगी...!
अभी जब तक वो हमसे दूर है,
तब तक मुझे समाज मैं , इज्ज़त के साथ जीने दो....!
कुछ करना चाहता हौं वो तो कर लेने दो...?
फिर मैं भी शान से मरूँगा,
और समाज को वो ख़ुशी दे जाऊंगा ,
जिसकी जरुरत हमारी आने वाली पीढ़ी को ,
जन्म जन्मान्तर तक होगी.....
!!!!!!
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