
मेरे पास शब्दों का भंडार नहीं
केवल उसकी अनुभूति है,
जो मुझे चुप रहने को बाध्य करती है,
मैं बताना चाहता हूँ ,
मानवता की असली परिभासा ,
पर कह नहीं पता,
"उदंडता को देखकर......"!
मैं देना चाहता हूँ ,"बहुत कुछ"
पर दे नहीं पता ,
"स्वाभिमान को देखकर....."
मुझे भी गुस्सा आता है ,
पर प्रकट नहीं कर पता ,
"वर्चस्वता को देखकर ....."
मेरे पास दृढ़ता की कमी नहीं
साधन सिमित है !
संस्कार की कमी नहीं ,
कुसंस्कार से घिरा हूँ !
जरुर ..................!
तेल नहीं है मेरे पास जलाने के लिए ,
पर आंतरिक ज्योति है ,
जिसे मैं अपने मानस पटल पर जलाकर
खोज लेता हूँ अपनी,
असफलता का असली कारन......!
अफ़सोस .........................!!
फिर भी मैं सफल नहीं हो पता.....!
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