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Friday, February 19, 2010

khoj


खोज
वीरान में भटक कर
सन्देश खोजता हूँ ,
है कल्पना विदेश की
मैं देश खोजता हूँ
देखता हूँ हर जगह
दिमाग ही दिमाग है !
नवजवान जल रहा ,
लगाई किसने आग है !
किसकी है ? ये साजिश !
इन्सान खोजता हूँ
है कल्पना विदेश की मैं देश खोजता हूँ
कौन ? रोकता है ,विकास की गति को !
हम चुन नहीं है पते अछे सभापति को !
हर नवजवान है , ताकत हर बुजुर्ग है बिद्वान ,
फिर भी न जाने! क्यों ? डर रहा है हिंदुस्तान
बिखरे हुए चट्टानों में इन्सान खोजता हूँ ,]
मंदिर के पत्थरों में भगवन खोजता हूँ
अजीब झंझटो से भारत ,
गुजर रहा है
ये गुलिस्तान हमारा कैसे बिखर रहा है ?
कल ज्ञान बताते थे , aj खुद को तरस रहे है
उजरे हुआ दिलो में सममाँन खोजते है ,
है कल्पना विदेश की हम देश खोजते ही
जय hind



1 comment:

  1. अच्छे विचार हैं। हिन्दी में लिखते चलिये।

    लगता है कि आप हिन्दी फीड एग्रगेटर के साथ पंजीकृत नहीं हैं यदि यह सच है तो उनके साथ अपने चिट्ठे को अवश्य पंजीकृत करा लें। बहुत से लोग आपके लेखों का आनन्द ले पायेंगे। हिन्दी फीड एग्रगेटर की सूची यहां है।

    कृपया वर्ड वेरीफिकेशन हटा लें। यह न केवल मेरी उम्र के लोगों को तंग करता है पर लोगों को टिप्पणी करने से भी हतोत्साहित करता है। आप चाहें तो इसकी जगह कमेंट मॉडरेशन का विकल्प ले लें।

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