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Saturday, May 29, 2010

हर जगह तेरी परछाई हैं |

अज्ञान की बातें वही करे , जिसको पता की साईं हैं |
तू छिपा नहीं से हैं ! नाथ ! हर जगह तेरी परछाई है|

मंदिर देखा , मस्जिद देखा ,
गुरूद्वारे की महिमा देखा ,
वे सिर्फ एक पर्तिक्स्थल हैं ,
जातियों का द्वन्द्स्थल हैं |
वहां द्वन्द हमेशा होता हैं ,और देव कल्प कर रोता हैं|
सब लड़ते हैं आपस मे , यहाँ कोई भाई - भाई हैं |
तू छिपा नहीं जग से हैं ! नाथ ! हर जगह तेरी परछाई है|

मंदिर-मस्जिद में कौन कहे ,
जो सबसे बड़ा अभागा हैं|
कर्तव्य के पथ से हटकर ,
पापो में मन ले भागा हैं|
कर्तव्य हे सबका पुण्य करे ,
द्वन्द और घृणा को शुन्य करे|

तू छिपा हुआ हर रज कण में ,
न्यायी अन्यायी के मन में|
मैं अपने अंतर्मन में भी,
हैं नाथ तुझे ही पता हूँ|
इस कारन सब कुछा त्याग जगत में तेरा ही गुण गाता हूँ |

क्या कहूँ ? नाथ तेरी महिमा ,
तू जग का ही निर्माता हैं |
कर्तव्य मार्ग पर जो आये ,
तू उसका भाग्य विधाता हैं|
जीवो के रक्षा का दायित्व तेरी ,
ही सर पे साईं हैं ,
तू छिपा नहीं जग से हैं ! नाथ ! हर जगह तेरी परछाई है|
दौलत की जंग निराली हैं,
दुनिया भी भोली - भाली हैं ,
चमक- दमक मतवाली हैं,
इन्सान भी खिचे जाते है ,
लुट जाने पर पछताते हैं |
जो दीखते है सभ्य जरा उनके दिल में भी का हैं |
तू छिपा नहीं जग से हैं ! नाथ ! हर जगह तेरी परछाई है|

Friday, May 28, 2010

परिधि (दायरा)

मेरी परिधि उस जगह जहाँ देव तेरा निवास हो ,
उपहास हो अनेकता का एकता का वास हो |
प्रेम की गंगा बहे सब जन नहाता ही रहे,
हर कलि जहाँ खिल सके , लोग सबसे मिल सके|
न्याय पर सब मर मिटे , अन्याय कोई सह सके|
ऐसा ही एक प्रकाश हो, मेरे देश का विकास हो |
मेरी परिधि उस जगह जहाँ देव तेरा निवास हो ,
दीन सुख से रह सके वह खा सके वह जी सके,
बच्चे सम्मुनत हो सके वह लक्ष्य अपना पा सके|
वे लड़ सके तूफान से ऐसा उसे विस्वास हो ,
मेरी परिधि उस जगह जहाँ देव तेरा निवास हो ,
प्रेम में सब डूब जाये ,घ्रिनाओ से उब जाये ,
प्यार के बंधन में बंधकर दुश्मनी को भूल जाये|
उपहास हो नारी का नारियों का सम्मान हो ,
मेरी परिधि उस जगह जहाँ देव तेरा निवास हो ,
सब भक्त हो भगबान का , गुणवान का , सम्मान का,
पवित्र दृष्टि रख सके , चरित्र उज्जवल बन सके ,
सूरज की किरणों की तरह अद्भुत उसका प्रकाश हो ,
मेरी परिधि उस जगह जहाँ देव तेरा निवास हो ,

Tuesday, May 25, 2010

मर्यादा


दुनिया की इज्ज़त लुट रही ,अब न जाने कब क्या होगा ?
हम राम कृष्ण के वंसज है मर्यादा में रहना होगा |

रावन ने हाथ बढाया है ,
सीता के दामन छूने को |
दुर्योधन ने की है पुकार
द्रोपदी की चिर खोलने को |

क्या....? तुम पांडव बन जाओगे, इज्ज़त को नहीं बचाओगे |
तुम्हे राम कृष्ण बनना होगा, मर्यादा में रहना होगा|

परदे से बहार आई नारी,
फैशन में वो छोड़ी साडी|
पहने ऐसा परिधान की,
सारा अंग दिखाई देता है,
मानव ही नहीं यह प्रकृति पुंज,
सब नज़र उधर कर लेता है|

नारी हो रही वेआवरू उसको करना है , जो कर ले |
हम लोग अगर पुरुषोतम है, क्यों न नज़रे नीची कर ले ?
अस्तित्व के लिए नारी को , संघर्ष बहुत करना होगा |
हम राम कृष्ण के वंसज है मर्यादा में रहना होगा |

बहने अब तुम आगे आओ ,
मैं तेरा सहारा बन लूँगा ,
तुम गंगा की लहर बनो ,
मैं तेरा किनारा बन लूँगा,
"आखिर" , तुम भी तो सीता हो ,
क्या ? रावन को माफ़ करोगे |
इंसाफ तुला तेरे हाथो में ,
तुम ही इंसाफ करोगे|

मर्यादा तेरे हाथो में ,यह याद तुम्हे रखना होगा|
हम राम कृष्ण के वंसज है मर्यादा में रहना होगा |

मैं असफल हूँ...!


मेरे पास शब्दों का भंडार नहीं
केवल उसकी अनुभूति है,
जो मुझे चुप रहने को बाध्य करती है,
मैं बताना चाहता हूँ ,
मानवता की असली परिभासा ,
पर कह नहीं पता,
"उदंडता को देखकर......"!
मैं देना चाहता हूँ ,"बहुत कुछ"
पर दे नहीं पता ,
"स्वाभिमान को देखकर....."
मुझे भी गुस्सा आता है ,
पर प्रकट नहीं कर पता ,
"वर्चस्वता को देखकर ....."
मेरे पास दृढ़ता की कमी नहीं
साधन सिमित है !
संस्कार की कमी नहीं ,
कुसंस्कार से घिरा हूँ !
जरुर ..................!
तेल नहीं है मेरे पास जलाने के लिए ,
पर आंतरिक ज्योति है ,
जिसे मैं अपने मानस पटल पर जलाकर
खोज लेता हूँ अपनी,
असफलता का असली कारन......!
अफ़सोस .........................!!
फिर भी मैं सफल नहीं हो पता.....!

Monday, May 24, 2010

फिर दिल टुटा !!


न जाने क्या माजरा है ?
दिल हमारा खपा - खपा सा हैं !
तन्हाई में ही खुश थे हम
उनकी यादो का एक आसरा है !

वे हमें आजमा रहे थे ,
हम ना समझ,
क्या - क्या समझ रहे थे ?
हमने तो उन्हें फुल समझा ,
पर वो मेरे दिल में कांटे चुभा रहे थे॥!

Wednesday, May 19, 2010

आखिर यह क्या है ?

मुझे अजीब लगता है |
जब संघर्ष विराम की और कुच करता है !!
जब मानवता वर्तमान के बारे में कम और,
भविष्य के बारे में ज्यादा सोचती हैं |
लहू की बूंद जमी हुई मालूम पड़ती है ,
सोचता हूँ आगे क्या हैं ?
कोई खतरनाक मोड़ या,
संघर्ष की अवस्था या कोई ,अद्भुत परिकल्पना,
जहाँ मैं अपने आप को अकेला पाता हूँ |
खैर कोई बात नहीं....! चलता है ,
जीवन इसी को तो कहते है जहाँ ,
रुकाबट,पर्तीक्षा ,परीक्षा, और संघर्ष
इनके बिना जीवन की परिकल्पना,
अधूरी सी दिखती है !!
पर कुछ मामलो में ,मैं अपने आप को ठहरा हुआ पाता हूँ|
कोई मेरे जज्बातों से खेल जाता है ,
मैं समझ नहीं पता ,
जो मेरे दिल को अच्छा लगता है या लगती है ,
बाद में उसी से नफरत क्यों हो जाता हैं |
ये मेरा अहम् है या कुछ और ,
किससे पुछू .......? कैसे पुछू .......?
लेकिन जानना तो पड़ेगा |
वर्ना मैं घुट घुट कर मर जाऊंगा |
मैं मरना नहीं चाहता ,
मैं जानना चाहता हूँ सच क्या हें |
देख लिया ,
उसे जो मेरे चारो और रहते हें,
सिर्फ दिखाबा है ,जो मेरी कल्पना के अन्दर तो है,
पर धुंधली सी ||
जाने कब.....? ये अपनी असलियत बता पाएंगे,
लेकिन मैं भी............................?????