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Friday, May 28, 2010

परिधि (दायरा)

मेरी परिधि उस जगह जहाँ देव तेरा निवास हो ,
उपहास हो अनेकता का एकता का वास हो |
प्रेम की गंगा बहे सब जन नहाता ही रहे,
हर कलि जहाँ खिल सके , लोग सबसे मिल सके|
न्याय पर सब मर मिटे , अन्याय कोई सह सके|
ऐसा ही एक प्रकाश हो, मेरे देश का विकास हो |
मेरी परिधि उस जगह जहाँ देव तेरा निवास हो ,
दीन सुख से रह सके वह खा सके वह जी सके,
बच्चे सम्मुनत हो सके वह लक्ष्य अपना पा सके|
वे लड़ सके तूफान से ऐसा उसे विस्वास हो ,
मेरी परिधि उस जगह जहाँ देव तेरा निवास हो ,
प्रेम में सब डूब जाये ,घ्रिनाओ से उब जाये ,
प्यार के बंधन में बंधकर दुश्मनी को भूल जाये|
उपहास हो नारी का नारियों का सम्मान हो ,
मेरी परिधि उस जगह जहाँ देव तेरा निवास हो ,
सब भक्त हो भगबान का , गुणवान का , सम्मान का,
पवित्र दृष्टि रख सके , चरित्र उज्जवल बन सके ,
सूरज की किरणों की तरह अद्भुत उसका प्रकाश हो ,
मेरी परिधि उस जगह जहाँ देव तेरा निवास हो ,

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