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Friday, December 31, 2010

हे ! प्रभु इस नए साल पर सब को सुख समृधि और सद्बुधी प्रदान करे ताकि .........हमारा देश का समुचित बिकास हो ........हम अपने चाहने वालो ...मेरे दरिद्रनारायण दीन तथा उन लोग जो इस देश को गाहे बगाहे लुट या बर्बाद कर रहे हैं ..भगवान् उनको सद्बुधी प्रदान करे. ........सबको दिल से
नए बर्ष की शुभकामना देता हूँ .....
उन सब के लिए नव वर्ष मंगलमय हो.....................!!

मुबारकबाद कैसे दूँ.........??????

दिल से दूँ या दिमाग से दूँ ....
फूलो की नाज़ुक पंखुरी से
या .... ! दहकती आग से दूँ।
सोच नहीं पा रहा हु की इस नए साल पे ,
मुबारकबाद कैसे दूँ..................?

चमन से दूँ या बहार से दूँ ,
गुल से या गुले गुलज़ार से दूँ,
हवा की ठंडी पछुवा बयार से दूँ ,
या ...जेहन में बसे मीठी मुश्कान से दूँ....
सोच नहीं पा रहा हु की नए साल पे
मुबारकबाद कैसे दूँ............?

Tuesday, November 23, 2010

ललकार .....!




मत सोच तुझे हे क्या करना...?
मत सोच तुझे हे क्या बनना ....?
जो होता हे हो जाने दे,
अपना सबकुछ खो जाने दे ,
चलने दे जीवन की घड़िया,
उसमे कभी बाधा तू बन ,
पर लगे रहो ले कर तन मन |
देख कभी पीछे मुड़कर,
खोने में ही तेरा सुख हे,
पा जायेगा रुक जायेगा
रुकना तो तेरी मौत ही हे ,
जीवन की तेरी सौत ही हे,
चलने दे जैसा चलता हे ,
संकट के भय से क्या डरना ... ?
मत सोच तुझे हे क्या करना...?
मत सोच तुझे हे क्या बनना ....?

डरने की कोई बात नहीं ,
डर कर कब तक जी पाओगे ,
क्या ....? संग्राम नहीं देखा तुमने,
वीरो की हे ये बसुन्धरा ,
डरने बाले मर जाते हैं ,
जीना है , तो खुल कर जी ले ,
बसुधा के अमृत को पी ले,
कायर की भांति जीना क्या ...?
उससे अच्छा तो मौत भला ...!!
साहस कर के देख जरा,
सब कुछ तेरा अपना होगा,
जिसको तू स्वप्नों सा जाना ,
साकार तेरा सपना होगा.....|
साहसी ! ध्वज लहराते हैं,
कायर सोते रह जाते है|
एक दिन सफलता आयेगी ,
तेरे आगे झुक जाएगी ,
उस दिन तू समझ पायेगा,
संसार देखता रह जायेगा |
लोग बाँहे फैलायेगे फिर तुझको गले लगायेगे |
फिर तू धन्य हो जायेगा ,
तेरा जन्म सफल हो जायेगा ,

अब सोच तुझे हे क्या करना ?
कायर बनकर जीवन जीना या ,
साहसी होकर मर जाना ..........?
यह प्रशन छोड़कर जाता हूँ !
अंतिम संकल्प सुनाता हूँ !
तेरा जीवन, तू जैसा जी........!
कोई पूछने नहीं आयेगा .....!
पेश करेगा ,साहसिक नैतिकता ,
संसार नतमस्तक हो जायेगा........!







Sunday, October 31, 2010

कुछ नहीं ...........!

अक्सर जब वो,
कुछ बाते करते हें ,
तो पता नहीं ऐसा क्यों लगता हे ?
की बात मेरे बारे में ही छिड़ी हो ...?
मेरा बहम या,
प्यार का पागलपन
जब उनसे पूछो हसने की बजह ,
तो उनका कहना .........!
"कुछ नहीं "
दिल में पता नहीं क्यों ?
एक तूफान मचा जाती हैं.....!
पर उनका ये अल्फाज़ .....
मेरे दिल को बहुत भाता हैं .......!

Wednesday, September 29, 2010

धर्मांध


आज फिर लोग परेंशा क्यों हें !

क्या हमारा देश फिर सुलगने वाला हे ?
देश का हर वर्ग....! जानना चाहता हे की ........!
जीत आखिर किसकी होगी ...
राम की या रहीम की .....................?

आखिर ये धर्मांध,
कब समझ पाएंगे कोई भी हारे ॥!
असली हार तो मानवता की होगी

हम सिर्फ ब्याख्यान देते हे ,
" इश्वर एक हैं "
अमल नहीं करते !
अगर अमल करते तो ,
आज ये नौवत ही नहीं आती ...?

अगर वास्तव में इश्वर एक हें ,
तो न राम और न ही रहीम की हार होगी !
ये इश्वर की हार होगी...!

क्या फर्क पर जायेगा अगर वहां ,
मंदिर बने या मस्जिद ,
अगर हम उस पालनकर्ता के सच्चे हितेषी हे ।!
तो क्यों न ?
वहां ऐसी ईमारत की बुनियाद रखी जाये ,
जो मानवता की सच्ची सेवा कर सके ...?
जिसपे हिन्दू ,मुस्लिम तथा देश के अन्य संप्रदाय को नाज़ हो!

Wednesday, September 22, 2010

करवाहट जीवन की........!



जिन्दगी में अहसास ,
कुछ इस तरह मिला की हम खुद को ही खो बैठे
हम उन्हें चाहते हे दिलबर की तरह,
वो मुझसे रहते हे ,कुछ रूठे-रूठे ,
अब तो डरता हु अपने ही वजूद से |
न जाने जिन्दगी किस मोड़ पर,
क्या गुनाह कर बैठे ?

क्या ? मेरे ही दिल में तमन्ना है उन्हें पाने का,
या , वो भी तडपते होंगे मेरे लिए ,
शायद ये मेरा वहम हे , या उनका दिल बेरहम हे !
इसलिए तो वो मुझसे रहते हे कुछ ऐठे - ऐठे ,
तभी तो डरता हु अपने वजूद से ,
न जाने जिन्दगी किस मोड़ पर,
क्या गुनाह कर बैठे ?

Tuesday, August 31, 2010

साक्षरता ! (रश्मि आर्य)

ई निरक्षरता, पर साक्षर होना कब मना था ,
अध्यापक के हाथ से भब्य जो मंदिर बना था
स्वपन में सपना सजा था ,
शब्दों में वह कब सजा था
रह गया निरक्षर
लेकिन साक्षर होना कब मना था,
है भविष्य में जो अँधियारा ,
प्रकाश लाना कब मना था
जिन्दगी अंधियारे से भरी थी
आँखों से मस्ती झलकती ,
पर साक्षरता का नाम नहीं था
पुरखो ने भी नहीं देखा शब्द किस बाला का नाम है,
ऐसा अंधकार उस समय बड़ा था
करती थी म्हणत मजदूरी मैं ,
पर साक्षर होने का नाम नहीं था,
माँ-बाप ने भी झोका भाद में मुझे ,
न सोचा पढाई के बारे में
यही अन्याय उनका बड़ा था,
रोता था मैं दिन रो रत को ,
न थी मेरी परबह किसी परिवार को,
साक्षर होना सपना था मेरा
न हुआ कभी वो मेरा
दुत्कारते थे साक्षर लोग मुझे
लेकिन साक्षर होना कब मना था
हंसी वो मेरी खो ही गयी थी ,
न जाने कहा उड़ सी गयी थी,
शर्म तो मुझे आती थी साक्षर के सामने ,
पर मेरे नसीब में निरक्षर होना लिखा था,
फिर एक दिन में साक्षर हुई ,
अक्षर भागते थे भूख-प्यास मेरी
आखिरकार सपना हुआ मेरा भी पूरा
पहुंची थी बिकसित देश में
मिली थी जानकारी मुझे सबसे ज्यादा
पूछते थे प्रशन मुझसे सभी लोग
किया मैंने अबिष्कार नये तकनीक का
लेकिन आता था रोष मुझे उन गरीब बेचारो बच्चो पर
जो करते थे मजदूरी अपने पेट के लिए
फिर एक दिन मैंने सोचा
क्यों न करू में सेवा इनकी
फिर बनाया साक्षर सभी को
लिया मैंने खुद से एक बड़ा
बनाया साक्षर बच्चे व बुजुर्ग ज्यादा
ताकि मेरे देश की मिटे निरक्षरता ,
और फैले साक्षरता का उजियारा।

Tuesday, July 27, 2010

दुर्घटना

सुबह सुबह जब मैंने आँख खोली तो
एक अजीब सा मंजर सामने था
जिसे मैंने अभी-अभी ,
स्वपन में कुछ देर पहले महसूस किया
वही हाथ में लिए खंजर सामने था

Tuesday, July 13, 2010

जीवन मेरी एक कविता हैं ...!
अभिलाषा हैं , तो पढ़ लेना
नीरसता का सागर हे , ये
हो सके तो प्रतिमा गढ़ लेना ....!

हैं किसके पास वक़्त यहाँ,
कवि की बातो को समझ सके..!
हैं किसकी अभिलाषा ऐसी ,
नीरसता में गोते लगा सके...!

मैं सत्य हमेशा दिखलाता ...!
हो सके तो सत्य समझ लेना,
जीवन मेरी एक कविता हैं ...!
अभिलाषा हैं , तो पढ़ लेना.......!




Sunday, June 27, 2010

भीख

माँ मैं कितनी प्यारी हूँ |
लोग यही कहते हैं न !
लेकिन मुझे पता है ....!
की तू भी मुझसे प्यार नहीं करती !
ये आँचल मुझे हमेशा आपकी याद दिलाती हे |
आपके प्यारे अहसास को ,
उस ममता की,
जिसके तले मैंने अपनी आंखे खोली |
जहाँ से मैंने इस दुनियां को निहारा |
मेरी भी तमन्ना है ,
आसमान को समेटने की ,
इसी नन्हे आँचल में |
लेकिन क्या .....?
ये तमन्ना पूरी हो पायेगी |
इस पुरुष प्रधान देश में ,
जहाँ लडकियों को गर्भ में ही मार दिया जाता हैं !
क्या मैं भी ....? आपकी तरह
किसी को आँचल दे पाउँगा |
ताकि ये पर्था जीवंत रहे |
लेकिन तब , जब मैं भी ,
खुल कर जी सकूँगा |
लेकिन तब , जब मैं भी उन्मुक्त होकर
अपने पंख पसार सकूँगा |
लेकिन ये तभी संभव हैं ,
जब मुझे आज़ाद पंछी की तरह
हर जगह फुदकने का मौका मिले
नहीं तो मेरी कोरी कल्पना,
बस धरी की धरी रह जाएँगी ,
तब मेरी ये आँचल सिमट कर रह जाएँगी |
माँ मुझे इतना बता दे क्या तू मुझे सचमुच प्यार नहीं करती ?
शायद...........!
तू भी नहीं चाहती की मैं इस दुनिया में आऊं....|
अगर चाहती हैं तो जन्म देने में हिचकती क्यों हैं ....?
और अगर जन्म दे भी दे तो .......!
मेरे पर काट कर मुझे पंखहीन क्यों बना देती है ?
तू मुझे उड़ने क्यों नहीं देती |
क्या तू डरती हे
कही ये डर तो नहीं की मैं तुम्हारे बेटे से ज्यादा आगे न बढ़ जाऊं |
मुझे मौका दो माँ.....|
फिर देख कौन तुझे कितना प्यार करता हैं ?
बस अब मैं क्या कहू...!
बाकि आप भी तो एक लड़की थी फिर मेरे साथ ऐसा अन्याय क्यों ?????
मुझे आपकी दौलत नहीं , आपका स्नेह ,आपकी ममता चाहिए |
और कुछ नहीं चाहिए
मेरी आँचल में बस यही भीख समझ कर दाल दो ?
मुझे यही चाहिए.................?????
आपकी प्यारी बिटिया.................................!!!!!!!

Friday, June 25, 2010

आदत सी हो गयी हैं


मैं अपने आप से वाकिफ हूँ ,
फिर भी आईने देखता हूँ ,
बदलाव तो आता नहीं ,
क्योंकि...मोह में फंसा हूँ ...!
लेकिन आईने देखने की
आदत सी हो गयी हैं...!

पहचान बनाना, दोस्ती का हाथ बढ़ाना ,
बिना मतलब का ,
व्यर्थ के झमेले में पड़ना ,
आदत सी हो गयी हैं...!

न जाने किसी को खुश देखना
किसी की एक मुस्कान के लिए मिट जाना
जब भी उसकी याद आये तो मुस्कुरा देना |
आदत सी हो गयी हैं ...!

मैं जानता हूँ की वो मुझे नहीं चाहती ....?
पर फिर भी उसकी तरफ एक आशा भरी निगाह से देखना
आदत सी हो गयी हैं...!

Monday, June 21, 2010

दोस्ती का तजुर्बा |

पहली बार ,
मैंने उसे देखा,
देखते ही पढ़ लिया ,
उसकी मस्तिस्क की रेखा,
शायद
वह दुनियां की भीड़
में अकेली थी |
एकदम गुमसुम ,मासूम ,उदास
सुन्दरता की ' प्रतिमूर्ति '
सांवला वर्ण ,आकर्षक नयन ,
मैं एकटक निहार रहा था उसे,
उससे चोरी छिपे|
तभी उसकी नज़र मुझपर पड़ी,
अचानक हुई हलचल ,
वह हो गयी खड़ी |
देखते ही देखते कही और चल पड़ी |
शायद शर्मा गयी हो |

दुसरे दिन वही , उसी जगह
उससे मुलाकात हुई ,
दो चार बात हुई ,
मैंने उससे उसकी उदासी की वजह पूछी ?
उसका जबाब था ...!
" अकेलापन "
"किसी की तलाश "
मैनी कहा 'किसका' ?
वह मूक हो गयी !
कुछ पल के लिए ,
फिर होठो पे एक मुस्कान बिखेर कर,
पुनः धीरे से बोली
" एक अच्छे मित्र की "
जो आपकी तरह हो ...!
मैं इंकार न कर सका ,
हामी भरी और मित्रता कर ली...!
विना सोचे ,समझे ,विचारे ,
उसने मुझमे क्या पाया ?
जो मुझे अपना दोस्त बनाया ?
"शायद " मेरी इंसानियत ,मासूमियत या
"बात करने की क़ाबलियत "
खैर जो भी हो ..........!
दिन गुजरे|
मेरी दोस्ती प्रगाढ़ हो चुकी थी

फिर एकाएक जोर से बिजली गिरी,
मेरी दोस्ती के बंधन पे |
वो विदा हो रही थी !
मेने खुद अपने हाथो से उसे विदा किया
वो चली गयी,
ज़माने की भीड़ में,
मुझे अकेला छोड़कर
खुश होकर अपना "अकेलापन " खोकर|
उनलोगों के साथ,
जो उसके अपने थे
मेरे लिए तो वो एक ख्वाब थी
जो नींद के साथ शुरू हुआ
और नींद टूटते ही ख़तम|
आज भी उसकी दोस्ती का
एक दीपक हमारे दिल में
प्रकाशमान हैं ,
लेकिन टिमटिमाते तारे की तरह......!

Sunday, June 6, 2010

जीवन और प्रश्न


सुख है , दुख है या चिंतन है ,
जीवन ये कैसा बंधन हैं ?
१.)
जब मे इस संसार में आया !
लेकर प्रश्नों का ही साया|
हर वक्त में पुछू माँ से ,
क्या है ये ?
इसे कौन बनाया ?
माँ हल करती हर सबाल को |
मेरा मन तब खुश हो जाता |
लेकिन क्या में रुकने वाला ?
फिर एक नन्हा प्रशन बनता |
हठ करता में हरदम माँ से ,
क्यों ? कैसे ? कब ? और कहाँ ?
गौ माता तो काली हे पर ,
क्यों देती हे उजली दूध ?

जीवन प्रश्नों का विषम जाल , इसे कोई समझ न पाया है |
जो जितना इसे जानना चाहा, नया प्रश्न ही पाया है |

सुबह- सुबह जब आँखे खोलू ,
सबसे पहले प्रश्न मिलता है !
देर उठा क्यों?
कितना सोया?
क्या देखा ? सपने में खोया !
कब जाना है दफ्तर भाई ?
चेहरा तेरा क्यों उदास है ?
किसने तेरी चपत लगाई ?

पत्नी कहती है, क्या खाना है ?
दफ्तर में क्या ले जाना है ?

हल
करता हूँ , हर दुबिधा को ,
फिर भी नया प्रश्न मिलता है !
तो सुख है , तो दुख है
तो कोई ही चिंतन है ,
आज समझ पाया हूँ शायद
जीवन प्रश्नों का मंथन है |

Friday, June 4, 2010

बेच डाले !


इमान बेच डाले , जवान बेच डाले ,
चंद कागजी टुकड़ो के खातिर ,
हिंदुस्तान बेच डाले|
हिंदुस्तान में बचा ही क्या है ?
भ्र्स्ताचारी कानून खरीद रहा है ,
तो आओ ,
हम सब मिलकर संबिधान बेच डाले।
सांप्रदायिक दंगे होते है ,
धर्म, मजहब के नाम पर,
मुस्लमान ने पवित्र कुराण बेच दिया है ,
तो आओ ,
हम सब मिलकर गीता , रामायण बेच डाले|
खुले आम रेप होता है,
पर क्या होता हैं ?
वही होता हें जो मंजूरे माफियाँ होता हें |
तो फिर कैसा राम ? कौन सा ईसा , बुद्ध का नाम ?
मुसलिम ने खुदा बेच दिया है ,
तो आओ,
हम सब मिलकर बुद्ध और राम बेच डाले |

Thursday, June 3, 2010

मेरा कलम क्यों बंद है ?


देखकर दुनियां की नीति
राजनीति, कूटनीति
आला अफसरों की भ्रष्ट नीति,
व्याप्त इस रास्त्रमंडल में ,
नेताओ की पक्ष नीति
खो रही है अपनी गरिमा
वेद की आचार नीति ,
चुप पड़ी है, ज्ञान का भंडार
वो चाणक्य नीति ,
भ्रष्टता के इस जहाँ में ,
इंसानियत तो चंद है ।
अफ़सोस ....................!
इतना जानकर ...!
"मेरा कलम क्यों बंद हैं ....?"

सच्चाई !

में नित्य पढता रामायण
साथ में होती हे गीता ,
मैं इतना भी तो बुरा नहीं
जो पीकर कहूँ नहीं पीता !

ओ आलोचक विष घोल नहीं ,
साहित्य समझ कुछ बोल नहीं ,
रंगरुटो से कह दे कोई ,
मंदिर में पीटे ढोल नहीं !

पागल !


वो, आया
एक पत्थर का टुकड़ा उठाया ,
उसे चूमा !
माथे से लगाकर
आँखों के सामने लाकर निहारा ,
आँखों से कुछ आंसू निकले,
अगले ही पल ,
वह मुस्कुराया ,
चेहरे पे गुस्से का भाव आया
पत्थर फेककर चला गया !
उस मंदिर के पास ,
जहाँ उसने उसी आकार के ,
शिला के सामने ,
लोगों को माथा टेकते देखा |
और बोला क्या बात है , " अहा"
पता है,
लोगो ने उसे पागल कहा !

Saturday, May 29, 2010

हर जगह तेरी परछाई हैं |

अज्ञान की बातें वही करे , जिसको पता की साईं हैं |
तू छिपा नहीं से हैं ! नाथ ! हर जगह तेरी परछाई है|

मंदिर देखा , मस्जिद देखा ,
गुरूद्वारे की महिमा देखा ,
वे सिर्फ एक पर्तिक्स्थल हैं ,
जातियों का द्वन्द्स्थल हैं |
वहां द्वन्द हमेशा होता हैं ,और देव कल्प कर रोता हैं|
सब लड़ते हैं आपस मे , यहाँ कोई भाई - भाई हैं |
तू छिपा नहीं जग से हैं ! नाथ ! हर जगह तेरी परछाई है|

मंदिर-मस्जिद में कौन कहे ,
जो सबसे बड़ा अभागा हैं|
कर्तव्य के पथ से हटकर ,
पापो में मन ले भागा हैं|
कर्तव्य हे सबका पुण्य करे ,
द्वन्द और घृणा को शुन्य करे|

तू छिपा हुआ हर रज कण में ,
न्यायी अन्यायी के मन में|
मैं अपने अंतर्मन में भी,
हैं नाथ तुझे ही पता हूँ|
इस कारन सब कुछा त्याग जगत में तेरा ही गुण गाता हूँ |

क्या कहूँ ? नाथ तेरी महिमा ,
तू जग का ही निर्माता हैं |
कर्तव्य मार्ग पर जो आये ,
तू उसका भाग्य विधाता हैं|
जीवो के रक्षा का दायित्व तेरी ,
ही सर पे साईं हैं ,
तू छिपा नहीं जग से हैं ! नाथ ! हर जगह तेरी परछाई है|
दौलत की जंग निराली हैं,
दुनिया भी भोली - भाली हैं ,
चमक- दमक मतवाली हैं,
इन्सान भी खिचे जाते है ,
लुट जाने पर पछताते हैं |
जो दीखते है सभ्य जरा उनके दिल में भी का हैं |
तू छिपा नहीं जग से हैं ! नाथ ! हर जगह तेरी परछाई है|

Friday, May 28, 2010

परिधि (दायरा)

मेरी परिधि उस जगह जहाँ देव तेरा निवास हो ,
उपहास हो अनेकता का एकता का वास हो |
प्रेम की गंगा बहे सब जन नहाता ही रहे,
हर कलि जहाँ खिल सके , लोग सबसे मिल सके|
न्याय पर सब मर मिटे , अन्याय कोई सह सके|
ऐसा ही एक प्रकाश हो, मेरे देश का विकास हो |
मेरी परिधि उस जगह जहाँ देव तेरा निवास हो ,
दीन सुख से रह सके वह खा सके वह जी सके,
बच्चे सम्मुनत हो सके वह लक्ष्य अपना पा सके|
वे लड़ सके तूफान से ऐसा उसे विस्वास हो ,
मेरी परिधि उस जगह जहाँ देव तेरा निवास हो ,
प्रेम में सब डूब जाये ,घ्रिनाओ से उब जाये ,
प्यार के बंधन में बंधकर दुश्मनी को भूल जाये|
उपहास हो नारी का नारियों का सम्मान हो ,
मेरी परिधि उस जगह जहाँ देव तेरा निवास हो ,
सब भक्त हो भगबान का , गुणवान का , सम्मान का,
पवित्र दृष्टि रख सके , चरित्र उज्जवल बन सके ,
सूरज की किरणों की तरह अद्भुत उसका प्रकाश हो ,
मेरी परिधि उस जगह जहाँ देव तेरा निवास हो ,

Tuesday, May 25, 2010

मर्यादा


दुनिया की इज्ज़त लुट रही ,अब न जाने कब क्या होगा ?
हम राम कृष्ण के वंसज है मर्यादा में रहना होगा |

रावन ने हाथ बढाया है ,
सीता के दामन छूने को |
दुर्योधन ने की है पुकार
द्रोपदी की चिर खोलने को |

क्या....? तुम पांडव बन जाओगे, इज्ज़त को नहीं बचाओगे |
तुम्हे राम कृष्ण बनना होगा, मर्यादा में रहना होगा|

परदे से बहार आई नारी,
फैशन में वो छोड़ी साडी|
पहने ऐसा परिधान की,
सारा अंग दिखाई देता है,
मानव ही नहीं यह प्रकृति पुंज,
सब नज़र उधर कर लेता है|

नारी हो रही वेआवरू उसको करना है , जो कर ले |
हम लोग अगर पुरुषोतम है, क्यों न नज़रे नीची कर ले ?
अस्तित्व के लिए नारी को , संघर्ष बहुत करना होगा |
हम राम कृष्ण के वंसज है मर्यादा में रहना होगा |

बहने अब तुम आगे आओ ,
मैं तेरा सहारा बन लूँगा ,
तुम गंगा की लहर बनो ,
मैं तेरा किनारा बन लूँगा,
"आखिर" , तुम भी तो सीता हो ,
क्या ? रावन को माफ़ करोगे |
इंसाफ तुला तेरे हाथो में ,
तुम ही इंसाफ करोगे|

मर्यादा तेरे हाथो में ,यह याद तुम्हे रखना होगा|
हम राम कृष्ण के वंसज है मर्यादा में रहना होगा |

मैं असफल हूँ...!


मेरे पास शब्दों का भंडार नहीं
केवल उसकी अनुभूति है,
जो मुझे चुप रहने को बाध्य करती है,
मैं बताना चाहता हूँ ,
मानवता की असली परिभासा ,
पर कह नहीं पता,
"उदंडता को देखकर......"!
मैं देना चाहता हूँ ,"बहुत कुछ"
पर दे नहीं पता ,
"स्वाभिमान को देखकर....."
मुझे भी गुस्सा आता है ,
पर प्रकट नहीं कर पता ,
"वर्चस्वता को देखकर ....."
मेरे पास दृढ़ता की कमी नहीं
साधन सिमित है !
संस्कार की कमी नहीं ,
कुसंस्कार से घिरा हूँ !
जरुर ..................!
तेल नहीं है मेरे पास जलाने के लिए ,
पर आंतरिक ज्योति है ,
जिसे मैं अपने मानस पटल पर जलाकर
खोज लेता हूँ अपनी,
असफलता का असली कारन......!
अफ़सोस .........................!!
फिर भी मैं सफल नहीं हो पता.....!

Monday, May 24, 2010

फिर दिल टुटा !!


न जाने क्या माजरा है ?
दिल हमारा खपा - खपा सा हैं !
तन्हाई में ही खुश थे हम
उनकी यादो का एक आसरा है !

वे हमें आजमा रहे थे ,
हम ना समझ,
क्या - क्या समझ रहे थे ?
हमने तो उन्हें फुल समझा ,
पर वो मेरे दिल में कांटे चुभा रहे थे॥!

Wednesday, May 19, 2010

आखिर यह क्या है ?

मुझे अजीब लगता है |
जब संघर्ष विराम की और कुच करता है !!
जब मानवता वर्तमान के बारे में कम और,
भविष्य के बारे में ज्यादा सोचती हैं |
लहू की बूंद जमी हुई मालूम पड़ती है ,
सोचता हूँ आगे क्या हैं ?
कोई खतरनाक मोड़ या,
संघर्ष की अवस्था या कोई ,अद्भुत परिकल्पना,
जहाँ मैं अपने आप को अकेला पाता हूँ |
खैर कोई बात नहीं....! चलता है ,
जीवन इसी को तो कहते है जहाँ ,
रुकाबट,पर्तीक्षा ,परीक्षा, और संघर्ष
इनके बिना जीवन की परिकल्पना,
अधूरी सी दिखती है !!
पर कुछ मामलो में ,मैं अपने आप को ठहरा हुआ पाता हूँ|
कोई मेरे जज्बातों से खेल जाता है ,
मैं समझ नहीं पता ,
जो मेरे दिल को अच्छा लगता है या लगती है ,
बाद में उसी से नफरत क्यों हो जाता हैं |
ये मेरा अहम् है या कुछ और ,
किससे पुछू .......? कैसे पुछू .......?
लेकिन जानना तो पड़ेगा |
वर्ना मैं घुट घुट कर मर जाऊंगा |
मैं मरना नहीं चाहता ,
मैं जानना चाहता हूँ सच क्या हें |
देख लिया ,
उसे जो मेरे चारो और रहते हें,
सिर्फ दिखाबा है ,जो मेरी कल्पना के अन्दर तो है,
पर धुंधली सी ||
जाने कब.....? ये अपनी असलियत बता पाएंगे,
लेकिन मैं भी............................?????

Sunday, March 28, 2010

अनुकरण बुरा है !

मेरे मित्रो ! एक बात तुमको और समझ लेनी चाहिए और वह यह है की हमें अन्य रास्त्रो से अबस्य ही बहुत कुछ सीखना है | जो व्यक्ति कहता है की मुझे कुछ नहीं सीखना है, समझ लो की वह मृत्यु की राह पर है |जो रास्ट्र कहता है की हम सर्बग्य है, उसका पतन आसन्न है ! जब तक जीना है, तब तक सिखाना है, उसे अपने सांचे में ढाल लेना है |

कोई दुसरो को सिखा नहीं सकता | तुम्हे स्वयं ही सत्य का अनुभव करना है उसे अपने परकृति किए

Thursday, March 4, 2010

तलाश आईने की ! ?????

मुझे तलाश है ,
एक आईने की ,
जिसमे मेरा वो रूप दिखे,
जिसे केवल मैं जानता हूँ ,
वह पारदर्शिता झलके
जिसे मैं मानता हूँ
मुझे तलाश है
एक आईने की
जो मेरी कुरूपता को दिखाए,
ताकि सुन्दरता मुझे खिंच न ले अपने
अंहकार के साये में
मुझे तलाश है
एक आईने की
जिसमे मैं अपना वासतविक रूप देख सकूँ
समझ सकू संसार में मेरा,
अस्तित्व क्या है ?

मुझे तलाश है
एक आईने की जो मुझे बताये
प्यार की परिभासा
क्योंकि मैं आकर्षण में जी रहा हूँ
मुझे तलाश है
एक आईने की जिसमे सभ्यता , संस्कृति ,
भारतीयता की एक सुंदरतम छवी हो
क्योंकि मैं इसे
खो चूका हूँ

मुझे तलाश है
एक आईने की
जो मुझे आजादी
का मतलब बताये
क्योंकिं हम गुलाम है ,
अपनी आदतों के



Wednesday, March 3, 2010

हिन्दू धर्मं


हिन्दू धर्मं एक व्यवाहरिक धर्मं हैं इसमें नैतिकता के पालन को अनिवार्य माना गया हैं यदि व्यक्ति में नैतिक गुण नहीं हैं ; तो वह चाहे जितना भी इस्वर -भक्ति का स्वांग करे, उसे धार्मिक नहीं कहा जाता


मनुष्य के मन में धर्मं के प्रति चाहे कितना आदर क्यों न हो , परन्तु जबतक वह आचरण के माध्यम से व्यक्त नही किया जाता , तबतक उस आदर का कोई मूल्य नहीं होता इसी कारन , हिन्दू धर्मं को जगत का पिता तथा नीति को janani mana जाता हैं धर्म से पृथक रहने वाली नीति विधवा है और नीति के बिना धर्मं एकांगी, आंशिक रह जाता हैं
हिन्दू धर्म का विकास कर्म
१.वैदिक युग
२.आचार्य युग
३.भक्ति युग
४.आधुनिक पुन्रजागरण
धर्मं क्या है ?
धर्मं का मतलब होता है जो धारण किया जा सके ,जिसे दिल से अपनाया जा सके जिसमे किसी का हस्तक्षेप नहीं हो

Thursday, February 25, 2010

अहसास


पत्थर की मूरत , देवी की सूरत

बस अहसास ही तो हैं और.............!

कुछ नहीं !!

जीने की कामना,

सत्य का सामना ,

विस्वाश की परख

अहसास ही तो हैं और

कुछ नहीं.............!

इन्सान की ताकत ,

इच्छाका दमन ,

प्यार की फरमाइश ,

अहसास ही तो हैं, और

कुछ नहीं...................!

माँ बाप की इज्ज़त ,

परिवार की कल्पना,

सिक्को को अहमियत ,

अहसास ही तो हैं , और

कुछ नहीं ......................!





Monday, February 22, 2010

दर्द !

दर्द उसे भी हुआ ,
और मुझे भी !

अंतर बस इतना था की,
उसने मुझे लातो से मारा,
और !!!!!!!
मैंने उसे बातो से मारा

Friday, February 19, 2010

khoj


खोज
वीरान में भटक कर
सन्देश खोजता हूँ ,
है कल्पना विदेश की
मैं देश खोजता हूँ
देखता हूँ हर जगह
दिमाग ही दिमाग है !
नवजवान जल रहा ,
लगाई किसने आग है !
किसकी है ? ये साजिश !
इन्सान खोजता हूँ
है कल्पना विदेश की मैं देश खोजता हूँ
कौन ? रोकता है ,विकास की गति को !
हम चुन नहीं है पते अछे सभापति को !
हर नवजवान है , ताकत हर बुजुर्ग है बिद्वान ,
फिर भी न जाने! क्यों ? डर रहा है हिंदुस्तान
बिखरे हुए चट्टानों में इन्सान खोजता हूँ ,]
मंदिर के पत्थरों में भगवन खोजता हूँ
अजीब झंझटो से भारत ,
गुजर रहा है
ये गुलिस्तान हमारा कैसे बिखर रहा है ?
कल ज्ञान बताते थे , aj खुद को तरस रहे है
उजरे हुआ दिलो में सममाँन खोजते है ,
है कल्पना विदेश की हम देश खोजते ही
जय hind



Friday, February 12, 2010

टीचिंग कांसेप्ट

Teaching is a social process in which teacher influences the bebaviour of the less experienced pupil and helps him develop according to the needs fo the society.
The teacher himself has to dicide, which solution would be suitable under the given circumstances.He cannot take the help ofany great book, advisor or assistant.
Teachers face difficult proplems quite often.If theydo not use wisdom while facing such problems, they may suffer heavily. Under a particular situation, different students may have different perceptions, actions, reaction and cotractions to a given issue or subject. Effective coordination among them could be a very difficult task in that event.
the best way for teaching is this:-
Methods of fulfillling the needs o highly intellligent students.
Techniques of motivation and their appropriate use.
Reasons of the creation of problems related to discipline: idenification of these reasons and their elimination

Teaching is both and Art and Science.It calls for exercise of talent and creativity. It is a professional activity involving teacher and student with a view to the development of the student. teaching is a system of actions variesd in form and related with content and pupil behaviour under the prevailing physical and social conditions.Teaching can be analysed, and assessed and analysis and assessment provide a fedbace for the improvement of the students. it is highly dominated by the communicatin skill. so to speak, teachingisan interactive process carries with purpose and objectives.
Teaching may have various forms as formal ,informal direcional ,instructioal, formationl,training, conditional,indoctrination talking, showing etc.

Thursday, February 11, 2010

इंडियन वोमेन


Condition of women in India.

The Constitution guarantees every citizen the fundamental right to equality. Yet after 50 years of independence .just one perusal of the female infant mortality figures. The literacy rates and the employment opportunities for women is sufficient evidence that discrimination exists. Almost predictably, this gender, bias is evident in our political system as well. In the 13th Lok sabha , there were only 43 women MPs out of a total of 543. It is not a surprising figure, for never has women’s for never has women’s representation in parliament been more than 10 percent.
Historically, the manifestos of major political parties have always encouraged women’s participation. It has been merely a charade, so, women’s organizations, denied a place on merit, opted for the last resort, a reservation of seats for women’s in parliament and state assemblies. Parties which look at everything with a vote bank in mind. Seemed to endorse this. Alas this too was a mirage.
But there is another aspect also. At a time when caste is the trump card, some politicians want the bill to include further quotas for women from among minorities and backward castes. There is more to it. A survey shows that there is a general antipathy towards the bill. It is actually a classic case of doublespeak: in public, public, politicians were endorsing women’s reservation but in the backrooms of parliament, they were busy sabotaging it. The reasons are clear: Men just don’t want to vacate their seats of power.