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Sunday, June 6, 2010

जीवन और प्रश्न


सुख है , दुख है या चिंतन है ,
जीवन ये कैसा बंधन हैं ?
१.)
जब मे इस संसार में आया !
लेकर प्रश्नों का ही साया|
हर वक्त में पुछू माँ से ,
क्या है ये ?
इसे कौन बनाया ?
माँ हल करती हर सबाल को |
मेरा मन तब खुश हो जाता |
लेकिन क्या में रुकने वाला ?
फिर एक नन्हा प्रशन बनता |
हठ करता में हरदम माँ से ,
क्यों ? कैसे ? कब ? और कहाँ ?
गौ माता तो काली हे पर ,
क्यों देती हे उजली दूध ?

जीवन प्रश्नों का विषम जाल , इसे कोई समझ न पाया है |
जो जितना इसे जानना चाहा, नया प्रश्न ही पाया है |

सुबह- सुबह जब आँखे खोलू ,
सबसे पहले प्रश्न मिलता है !
देर उठा क्यों?
कितना सोया?
क्या देखा ? सपने में खोया !
कब जाना है दफ्तर भाई ?
चेहरा तेरा क्यों उदास है ?
किसने तेरी चपत लगाई ?

पत्नी कहती है, क्या खाना है ?
दफ्तर में क्या ले जाना है ?

हल
करता हूँ , हर दुबिधा को ,
फिर भी नया प्रश्न मिलता है !
तो सुख है , तो दुख है
तो कोई ही चिंतन है ,
आज समझ पाया हूँ शायद
जीवन प्रश्नों का मंथन है |

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